नये भत्तों को कर्मचारियों ने ठुकराया
हरियाणा सरकार द्वारा चिकित्सा भत्ता, मकान किराया भत्ता, साइकिल भत्ता व शहर पूर्ति भत्ता के बारे में की गई घोषणा को हरियाणा कर्मचारियों के साथ क्रूर मजाक व खिजाने वाले उपहास है।
सरकार की घोषणा को ऊंट के मुंह में जीरा बताते हुए कर्मचारी नेताओं ने कहा कि कर्मचारी इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि चतुर्थ वेतन आयोग के वेतनमान प्रथम जनवरी 1996 से लागू हुए थे और पांचवा वेतन आयोग के वेतनमान जनवरी से दिए गये हैं और भत्ते प्रथम जनवरी 1998 से देने का निर्णय लिया गया है। इस प्रकार इस 12 वर्ष की अवधि में औषधों की कीमत 20 गुणा बढ़ी है व मकान किराया अगर कम से कम न्यायालय के निर्णयानुसार 10 प्रतिशत वार्षिक की भी वृद्धि लगाएं तो 120 प्रतिशत बढ़ा है।
सभी प्रकार के भत्ते मिलाकर प्रतिमास 45 से 60 रूपये की बढ़ोतरी बनती है। जबकि विधान सभा के इसी बजट अधिवेशन में हरियाणा सरकार ने अपने विधायकों के वेतन मानों में भारी वृद्धि की है उन्होंने कहा कि सरकार के इस निर्णय से आभास होता है कि वह कर्मचारियों के साथ दूसरे दर्जें का व्यवहार कर रही है।
यह भूख कौन मिटायेगा? यह अत्याचार कौन ख़त्म करेगा?
हमारे देशवासियों के दिलों में आग धधक रही है। ऐसा क्यों न हो जब इंसान अपने छोटे छोटे बच्चों को रोटी के लिये रोता हुआ पाये और उन्हें रोटी दिला न पाये। भला इंसान का दिल क्यों न जले अगर जिंदगी भर, दिन-रात पूंजीपतियों के लिये कमर तोड़ने के बाद वह अपने बच्चों को खिला न पाये, पहनने के लिये कपड़ा न दे पाये, उन्हें स्कूल न भेज पाये? या अगर कोई गरीब मां अपने बच्चों को बीमारी से कमज़ोर होते या मरते देखने को मजबूर हो क्योंकि उनका इलाज करने के पैसे नहीं है। या जब किसी की बेइज़्ज़्ाती की जाती है, अमीर और राज करने वाले उस पर हमला करते हैं और उस पर अत्याचार करते हैं, या तो उनकी जात के कारण, या क्योंकि वह महिला है या बस गरीब है या अगर शहर साफ करने के बहाने किसी गरीब के घर को तोड़ दिया जाये।
गरीबी और भुखमरी, अत्याचार व बेइज़्ज़्ाती अधिकतम देशवासियों की जिंदगी के हमसफर हैं। हर साल करोड़ों किसान परिवार अपनी होने वाली किस्मत से डरते रहते हैं। अपनी छोटी सी जमीन से गुजारा नहीं चलता, सूदखोरों से पैसा उधार लेना पड़ता है, कर्जा चुका नहीं पाते, जमीन बेचनी पड़ती है, दूसरों की जमीन पर चंद सिक्कों के लिये खेत मजदूरी करनी पड़ती है। कुछ और रोजी-रोटी की तलाश में दर-दर शहरों में भटकते हैं, जहां शोषण और बेइज़्ज़्ाती का सामना करते हैं। फैक्टरी मजदूरों, रिक्शा चालकों, रेलवे स्टेशन केे कुलियों, निर्माण मजदूरों और खेत मजदूरों के चेहरों पर हम वह चीज़्ा पाते हैं जिसे हिन्दोस्तान ने बार-बार पैदा किया है-भूख, गरीबी, अत्याचार व बेइज़्ज़्ाती।
15 अगस्त को प्रधान मंत्री एक बार फिर लाल किले से भाषण देगा, गरीबी के बारे में घड़ियाली आंसू बहायेगा। जब प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 51 साल पहले
ऐसा भाषण दिया था, तो शायद कुछ लोगों को कोई उम्मीद थी। पर अब ऐसा और नहीं है। हिन्दोस्तान दो हिस्सों में बंट चुका है। एक तरफ है गरीब और भूखी बहुसंख्या। दूसरी तरफ वह अल्पसंख्या जो इस गरीबी और भुखमरी से मुनाफ़ा कमाते हैं। यही मुनाफाखोर, बड़े सरमायदार 1947 से आज तक राज्य सत्ता पर कब्ज़ा किये बैठे हैं। उनके अलग-अलग अवतार हैं-कांग्रेस, भाजपा, जनता पार्टी, संयुक्त मोर्चा, आदि। हमारे शोषण और अत्याचार से फायदा उठाने वाले क्यों इसे खत्म करेंगे? भला यमराज हमें मौत से क्यों बचायेगा?
गरीबी और भूख, अत्याचार और बेइज़्ज़्ाती के शिकार जो लोग हैं, उन्हें खुद अपना उद्धार करना होगा। हम मजदूरों और किसानों को ही यह काम करना होगा। सदियों से हमने अपनी कमर तोड़ कर शोषकों की हवस मिटाई है। अगर हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे भी ऐसा ही करते रहें, तो हमें इस बेबर्दाश्त व्यवस्था के खिलाफ़ बगावत का झंडा फहराना होगा।
मजदूरों, किसानों और सभी दबे-कुचले लोेगों का इंकलाबी संयुक्त मोर्चा ही भूख और गरीबी मिटा सकता है। हर जागरूक मजदूर और किसान, हर हिन्दोस्तानी जिसके दिल में यह आग जल रही है, उसे यह मोर्चा बनाने में पूरा योगदान देना होगा। हमारे पास अपनी जंजीरों के सिवाय खोने को और कुछ नहीं है। पर अगर हम हिम्मत करें तो भूख, गरीबी, अत्याचार व बेइज़्ज़्ाती से मुक्त जीवन पा सकते है।
कम्युनिस्ट शोषण-अत्याचार से मुक्ति की निशानी, लाल झंडे पर कसम खाते हैं। उनकी सच्चाई व नेक इरादों की कसौटी यह है कि क्या वे मजदूरों-किसानों का इंकलाबी संयुक्त मोर्चा बनाने के पक्ष में हैं या नहीं? इतिहास उन्हें इसी काम से परखेगा।
नर्सें 15 अगस्त को काला दिवस मनायेंगी
जिस दिन सरमायदार स्वतंत्रता की 51वीं वर्षगांठ मना रहा होगा तब हरियाणा राज्य की नर्सें काले बिल्ले और दुपट्ठे ओढ़ कर सरकार के नर्स विरोधी नीति के विरुद्ध रोष व्यक्त करेगीं। पंÛ भगवत दयाल शर्मा स्नातकोत्तर चिकित्सा संस्थान की नर्से राज्य सरकार द्वारा उनकी न्यायोचित मांगें स्वीकार न करने के विरोध में स्वतंत्रता दिवस 15 को काला दिवस के रूप में मनायेगी।
इस संबंध में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के इस आश्वासन पर गत जून में 34 दिन पुरानी हड़ताल को समाप्त किया गया था कि सरकार उनकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने को तैयार है। लेकिन आज उनकी हड़ताल को समाप्त हुए लगभग डेढ़ महीना गुजर गया मगर राज्य सरकार ने उनकी मांगों पर बातचीत करना तो दूर अभी तक विचार का मन भी नहीं बनाया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को अपना तथा अपने मंत्रियों और विधायकों का वेतन, भत्ते और अन्य सुविधायें बढ़ाने की तो याद है। लेकिन उन्हें राज्य की असहाय नर्सों को सुविधायें देने की बातें याद नहीं रहीं। इसलिए अब सरकार का ध्यान नर्सों की मांगों की ओर आकर्षित करने के लिए नर्सों ने 15 अगस्त को काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है और अगर उनकी न्यायसंगत मांगे नहीं मानीं तो नर्सें पुनः आंदोलन आरंभ कर देंगी जिसकी सारी जिम्मेदारी सरकार पर होगी।