हरियाणा में बिजली दरों में वृद्धि
हरियाणा राज्य सरकार ने विगत दो वर्षो में आठवीं बार बिजली की दरों में वृद्धि की। बिजली दरांे के अलावा बिजली बोर्ड ने सिक्योेरिटी, मीटर सिक्योेरिटी और सर्विस चार्ज की दरों में भी वृद्धि की है।
अब तक कुल मिला कर हरियाणा सरकार ने विगत दो वर्षो मंे 50 प्रतिशत तक वृद्धि कर चुकी है।
हरियाणा में बिजली बोर्ड द्वारा हाल में ही बिजली की दरों में की गयी वृद्धि को लेकर हरियाणा के सभी मजदूर संगठनों और आम लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
संस्थाओं एवं संगठनों ने इसे जनता के साथ बड़ा धोखा बताते हुए कहा कि सरकार यह बढ़ोतरी विश्व बैंक के निर्देश पर कर रही है। उन्होनें बताया कि सरकार प्रदेश की जनता को दोहरी मार डाल रही है। एक ओर जनता को बिजली की आपूर्ती नहीं दी जा रही है और दूसरी ओर दरों में बेतशाहा वृद्धि करके आम जनता के आर्थिक बजट को असंतुलित किया जा रहा है।
हरियाणा कर्मचारी महासंघ ने हरियाणा सरकार द्वारा घरेलू खपत के लिये वृद्धि को अनावश्यक एवं वेतन भोगी कर्मचारी वर्ग के साथ घोर अन्याय बताया है और कहा कि सरकार बिजली बोर्ड का पूर्ण निजीकरण कर देने की साज़िश रच रही है।
रोडवेज कर्मचारी यूनियन ने भी बिजली की दरों में वृद्धि की आलोचना करते हुए इसे वापस लेने की मांग की।
हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ ने बिजली की दरों में की गयी भारी वृद्धि को तत्काल वापस लेने की मांग की हैं। इस वृद्धि से स्कूल, कालेज व अस्पताल जैसे संस्थाओं को भी नहीं बक्शा गया है।
थर्मल पावर प्लांट के ठेके मजदूरों का दर्द
सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों को धीरे-धीरे निजीकरण के अन्तर्गत करके उसमें ठेकेदारी प्रथा को जन्म देकर एक ओर मजदूरों का शोषण कर रही है। दूसरी ओर सार्वजनिक सम्पत्ति को पूंजीपतियों के हाथों में सौंप कर देश के लोगों के साथ
विश्वाघात कर रही है।
ऐसी ही स्थिति दक्षिण दिल्ली के बदरपुर में स्थित नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन की हैं जहां प्रबंन्धक और ठेकेदार मिलकर वहां काम कर रहे कर्मचारियों को अपने शोषण का शिकार बना रहें हैं। वहां नियमित कर्मचारियों के अपेक्षा अनियमित कर्मचारी की संख्या दुगनी है।
यहां काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि उनको दिन में 72.50 रुपये मिलते है जिसमें से उनको फंड आदि काट कर महीना 1500 रुपये की तनख्वाह मिलती है। फंड में काटी जाने वाली राशी के बारे में मजदूरों के पूछने पर उनको स्पष्ट उत्तर नहीं दिया जाता और न ही सालों साल काम कर रहे मजदूरो को कोई फंड की रसीद इत्यादि दी जाती जिससे यह पता लग सके कि वास्तव में फंड जमा होता है या नहीं। लेकिन यदि मजदूर इसके बारे में पूछे तो ठेकेदार उनको काम से हटा देते है।
मजदूरों ने बताया कि कारपोरेशन द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं पर नियमित तथा अनियमित कर्मचारीयों दोनों का बराबर हक है परन्तु अनियमित कर्मचारियों के साथ काफी भेद भाव बरता जाता है। कैंटिन में खाना खाने के लिए नियमित मजदूरों को
1.50 रुपये तथा अनियमित मजदूरों को लगभग 8 रुपये देना पड़ता है।
अनियमित कर्मचारियों को कोयले आदि के काम करने के उपरांत गुड़ देने का प्रावधान है परन्तु वह भी उनको नहीं दिया जाता है।
यहां के अनियमित कर्मचारियों ने प्रंबधकों और ठेकेदारों पर आरोप लगाया कि ये लोग मिलकर हमारे हको को खा जाते है। ठेकेदारी की ये व दूसरी मिसाले सरकार के “न्यूनतम वेतन कानून की धज्जियां उड़ाती है।
नये वेतनमान पर ओवरटाइम को लेकर रैली
हरियाणा रोड़वेज वर्कर्ज यूनियन के आहृान पर नये वेतनमानों पर “ओवरटाइम” की मांग को लेकर स्थानीय बस डिपों के कर्मचारियों ने शाखाप्रधान की अध्यक्षता मंे बस अड्डे पर प्रदर्शन किया।
हरियाणा सरकार की कर्मचारी विरोधी नीतियों को लेकर जमकर आलोचना की और उन्होंने कहा कि सरकार ने नये वेतनमानो को भारी विसंगतियों के साथ देने की घोषणा तो जरूर कर दी है लेकिन परिवहन कर्मियों को ओवर टाइम का भुगतान पुराने वेतनमानों के आधार पर कर रही है।
उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि अवैध वाहनों को छूट देना, महाप्रबन्धकों के पदों को खाली करवाना तथा उनसे यातायात चालान तक के अधिकार वापस लेना, बसों की संख्या मंे लगातार कमी करते जाना, ठेके कर्मचारियों की भर्ती करते जाना, निजी बस मालिकों के बस परमिटों में वृद्धि करना, स्पेयर पाटर््स की खरीद में धंाधली करना, अनुभवहीन महाप्रबंधकों की नियुक्ति करना तथा सवारी कर से होने वाली आय को परिवहन की आय से अलग रखना, आदि जैसी हरकतें की जा रही है।
आगामी जुलाई 7 को सुबह 10 बजे से 12 बजे तक फतेहाबाद डिपों में स्थानीय लोगों के लिए दो घंटे की हड़ताल करने की घोषणा की गयी।
रोडवेज़ कर्मिंयों की पूरी कोशिश है कि आम जनता का भी समर्थन प्राप्त किया जाय, क्योंकि सरकार आम जनता को हड़ताली मजदूरो के खिलाफ़ कर देने की कोशिश करती है।
”कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र“
निम्नलिखित पंक्तियों में कार्ल माक्र्स और फ्रेडरिक एंगेल्स यह समझाते हैं कि सरमायदार कैसे अधिकतम मुनाफों की खोज में, सारी दुनिया पर अपनी जाल बिछा देते हैं और अलग अलग राष्ट्रों की अपनी अलग पहचान को मिटा देते हैं।
“सरमायदारों ने दुनिया के बाजार का शोषण करके हर देश में उत्पादन और व्यय को एक दुनियावी रूप दे दिया है। प्रतिक्रियावादियों को इस बात से बहुत दुख है कि सरमायदारों ने उद्योग को अपनी राष्ट्रीय नींव से हटा दिया है। सभी पुराने, प्रस्थापित राष्ट्रीय उद्योगों को नष्ट कर दिया गया है या हर रोज़ नष्ट किया जा रहा है। उन्हें हटाकर नये उद्योग लगाये जा रहे हैं, जिन उद्योगों का लगाया जाना सभी सभ्य राष्ट्रों के लिये जीवन-मौत का सवाल बन जाता है, ऐसे उद्योग जो अन्दरूनी कच्चे माल से काम नहीं करते बल्कि दूर दूर इलाकों से लाये गये कच्चे माल से काम करते हैं, ऐसे उद्योग जिनके उत्पादों का व्यय सिर्फ घर में ही नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने में होता है। देश के अपने उत्पादों से पूरी होने वाली जरूरतों की जगह पर नई जरूरतें पैदा होती हैं, जिन्हें पूरा करने के लिये दूर देशों व वातावरणों के उत्पादों की जरूरत होती है। पुराने स्थानीय व राष्ट्रीय अकेलापन और आत्म-निर्भरता की जगह पर हर दिशा में पारस्परिक सम्बन्ध, सभी राष्ट्रों की दुनिया के स्तर पर आपसी अन्तर-निर्भरता दिखाई देती है। और जैसा पदार्थों के उत्पादन में, वैसा ही बुद्धिजीवी उत्पादन में भी। अलग अलग राष्ट्रों की बुद्धिजीवी रचनायें सांझी सम्पत्ति बन जाती है। राष्ट्रीय एकतरफापन और तंग सोच ज्यादा से ज्यादा नामुमकिन हो जाते हैं, और अनगिनत राष्ट्रीय व स्थानीय साहित्यों में से एक दुनिया का साहित्य उत्पन्न्ा होता है।”