व्यंजन संधि की परिभाषा (Definition)
व्यंजन संधि: जब किसी व्यंजन का व्यंजन से अथवा व्यंजन का स्वर से मेल होता है और उनके उच्चारण तथा लेखन में परिवर्तन (विकार) होता है, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
अन्य नाम: व्यंजन संधि को हल् संधि भी कहते हैं।
उदाहरण:
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + हार = उद्धार
- दिक् + गज = दिग्गज
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
व्यंजन संधि के मुख्य नियम (Main Rules)
व्यंजन संधि के आठ मुख्य नियम होते हैं:
- जश्त्व संधि – वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन
- अनुस्वार/परसवर्ण संधि – वर्ग के पहले वर्ण का पाँचवें वर्ण में परिवर्तन
- त् संबंधी संधि – त् के विभिन्न परिवर्तन
- छ/श्चुत्व संधि – छ और श्चुत्व से संबंधित नियम
- म् संबंधी संधि – म् के परिवर्तन
- स् संबंधी संधि (ष्टुत्व) – स् का ष् में परिवर्तन
- लत्व संधि – त् का ल् में परिवर्तन
- चर्त्व संधि – वर्ग के पहले वर्ण में परिवर्तन
नियम 1: जश्त्व संधि (Jashtva Sandhi)
परिभाषा:
जब क् च् ट् त् प् (वर्ग के पहले वर्ण) के बाद वर्ग का तीसरा/चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह या कोई स्वर आता है, तो वर्ग का पहला वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
नियम तालिका:
पहला वर्ण | → | तीसरा वर्ण |
---|---|---|
क् | → | ग् |
च् | → | ज् |
ट् | → | ड् |
त् | → | द् |
प् | → | ब् |
जश्त्व संधि के 150+ उदाहरण:
क् → ग् के उदाहरण:
- दिक् + गज = दिग्गज
- वाक् + दान = वाग्दान
- वाक् + ईश = वागीश
- वाक् + जाल = वाग्जाल
- वाक् + यंत्र = वाग्यंत्र
- वाक् + विदग्धता = वाग्विदग्धता
- वाक् + ईश्वर = वागीश्वर
- वाक् + वज्र = वाग्वज्र
- वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
- वाक् + मय = वाङ्मय
- दिक् + अंत = दिगंत
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
- दिक् + विजय = दिग्विजय
- दिक् + वधू = दिग्वधू
- दिक् + हस्ती = दिग्हस्ती
- दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
- दिक् + गयंद = दिग्गयंद
- दिक् + अंचल = दिगंचल
- दिक् + पाल = दिक्पाल
च् → ज् के उदाहरण:
- अच् + अंत = अजंत
- अच् + आदि = अजादि
- अच् + झीन = अज्झीन
- अच् + हरण = अज्झरण
- कच् + जल = कज्जल
ट् → ड् के उदाहरण:
- षट् + अंग = षडंग
- षट् + आनन = षडानन
- षट् + गुण = षड्गुण
- षट् + रस = षड्रस
- षट् + राग = षड्राग
- षट् + विकार = षड्विकार
- षट् + यंत्र = षड्यंत्र
- षट् + अभिज्ञ = षडभिज्ञ
- षट् + दर्शन = षड्दर्शन
- षट् + भुजा = षड्भुजा
त् → द् के उदाहरण:
- तत् + भव = तद्भव
- सत् + गति = सद्गति
- सत् + गुण = सद्गुण
- सत् + धर्म = सद्धर्म
- सत् + भावना = सद्भावना
- सत् + वाणी = सद्वाणी
- सत् + विचार = सद्विचार
- उत् + घाटन = उद्घाटन
- उत् + गम = उद्गम
- उत् + गार = उद्गार
- उत् + घोष = उद्घोष
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
- उत् + दंड = उद्दंड
- उत् + हत = उद्घत
- उत् + योग = उद्योग
- उत् + वेग = उद्वेग
- उत् + यान = उद्यान
- महत् + आत्मा = महदात्मा
- जगत् + ईश = जगदीश
- जगत् + गुरु = जगद्गुरु
- जगत् + आधार = जगदाधार
- भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
- कृत् + अंत = कृदंत
- तत् + रूप = तद्रूप
- तत् + आकार = तदाकार
- तत् + अर्थ = तदर्थ
- तत् + आत्म = तदात्म
- तत् + घित = तद्घित
- चित् + आनंद = चिदानंद
- जगत् + आनंद = जगदानंद
- जगत् + माता = जगन्माता
प् → ब् के उदाहरण:
- अप् + ज = अब्ज
- अप् + मय = अब्मय
- अप् + द = अब्द
- अप् + धि = अब्धि
- अप् + दान = अब्दान
- अप् + हरण = अब्भरण
- अप् + माधुर्य = अब्माधुर्य
- सुप् + अंत = सुबंत
- लभ् + धा = लब्धा
अतिरिक्त जश्त्व संधि के उदाहरण:
- ऋक् + वेद = ऋग्वेद
- सम्यक् + ज्ञान = सम्यग्ज्ञान
- प्राक् + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
- वाक् + ईश्वरी = वागीश्वरी
- उत् + अंक = उदंक
- उत् + अग्र = उदग्र
- उत् + अय = उदय
- उत् + भव = उद्भव
- उत् + भास = उद्भास
- तत् + लीन = तल्लीन
- तत् + लय = तल्लय
- तत् + मित्र = तन्मित्र
- तत् + टीका = तट्टीका
- तद् + कार = सत्कार
- आपद् + ति = आपत्ति
- उत् + पन्न = उत्पन्न
- तत् + पर = तत्पर
- दिक् + पाल = दिक्पाल
- ककुभ् + प्रांत = ककुप्प्रांत
- लभ् + स्यते = लप्स्यते
- अस्मद् + पुत्र = अस्मत्पुत्र
- शरद् + उत्सव = शरदुत्सव
- उत् + सव = उत्सव
- उत् + सर्जन = उत्सर्जन
- उत् + सर्ग = उत्सर्ग
- सुप् + अन्त = सुबन्त
- सुप् + धि = सुब्धि
- वाक् + वदन = वाग्वदन
- वाक् + बल = वाग्बल
- वाक् + हरि = वाग्हरि
- दिक् + अम्बुज = दिगम्बुज
- दिक् + आलय = दिगालय
- दिक् + ध्वज = दिग्ध्वज
- दिक् + नाग = दिग्नाग
- दिक् + बंधु = दिग्बंधु
- दिक् + मंडल = दिग्मंडल
- दिक् + रक्षक = दिग्रक्षक
- षट् + आत्मक = षडात्मक
- षट् + ऋतु = षड्ऋतु
- षट् + कोण = षट्कोण
- षट् + भाग = षड्भाग
- षट् + मुख = षण्मुख
- तत् + उपरांत = तदुपरांत
- तत् + उपरि = तदुपरि
- तत् + एव = तदेव
- तत् + हित = तद्धित
- उत् + बोधन = उद्बोधन
- उत् + बल = उद्बल
- उत् + धरण = उद्धरण
- उत् + धत = उद्धत
- उत् + घात = उद्घात
- उत् + घुष्ट = उद्घुष्ट
- उत् + ज्ञान = उज्ज्ञान
- उत् + जीवन = उज्जीवन
- उत् + जय = उज्जय
- महत् + उदय = महदुदय
- महत् + भाग = महद्भाग
- महत् + भय = महद्भय
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
- जगत् + नाथा = जगन्नाथा
- जगत् + धात्री = जगद्धात्री
- जगत् + बंधु = जगद्बंधु
- भगवत् + गीता = भगवद्गीता
- भगवत् + दर्शन = भगवद्दर्शन
- भगवत् + रूप = भगवद्रूप
- कृत् + आदि = कृदादि
- कृत् + व्युत्पत्ति = कृद्व्युत्पत्ति
- तत् + आनीं = तदानीं
- तत् + अनंतर = तदनंतर
- तत् + विध = तद्विध
- तत् + विषय = तद्विषय
- चित् + रूप = चिद्रूप
- चित् + विलास = चिद्विलास
- अप् + नदी = अब्नदी
- अप् + इंधन = अबिंधन
नियम 2: अनुस्वार/परसवर्ण संधि
परिभाषा:
जब क् च् ट् त् प् के बाद न या म आता है, तो वर्ग के पहले वर्ण का पाँचवें वर्ण (नासिक्य/अनुनासिक) में परिवर्तन हो जाता है।
नियम तालिका:
पहला वर्ण | + न/म | → | पाँचवाँ वर्ण |
---|---|---|---|
क् | + न/म | → | ङ् |
च् | + न/म | → | ञ् |
ट् | + न/म | → | ण् |
त् | + न/म | → | न् |
प् | + न/म | → | म् |
अनुस्वार संधि के 150+ उदाहरण:
त् → न् के उदाहरण:
- उत् + नति = उन्नति
- उत् + नयन = उन्नयन
- उत् + नायक = उन्नायक
- उत् + मत्त = उन्मत्त
- उत् + मुख = उन्मुख
- उत् + मूलन = उन्मूलन
- उत् + मीलित = उन्मीलित
- उत् + माद = उन्माद
- उत् + मेष = उन्मेष
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
- जगत् + माता = जगन्माता
- उत् + नत = उन्नत
- उत् + नति = उन्नति
- उत् + मत = उन्मत
- उत् + नाम = उन्नाम
- तत् + नाम = तन्नाम
- तत् + मात्र = तन्मात्र
- तत् + मय = तन्मय
- चित् + मय = चिन्मय
- कृत् + न = कृन्न
ट् → ण् के उदाहरण:
- षट् + मास = षण्मास
- षट् + मुख = षण्मुख
- षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
- षड् + नाम = षण्णाम
- षट् + मत = षण्मत
प् → म् के उदाहरण:
- अप् + मय = अम्मय
- परम् + तु = परंतु
सम् से बनने वाले उदाहरण (म् → अनुस्वार):
- सम् + गम = संगम
- सम् + गीत = संगीत
- सम् + चय = संचय
- सम् + चार = संचार
- सम् + गठन = संगठन
- सम् + जय = संजय
- सम् + तोष = संतोष
- सम् + ताप = संताप
- सम् + देश = संदेश
- सम् + देह = संदेह
- सम् + दीप = संदीप
- सम् + धि = संधि
- सम् + धान = संधान
- सम् + नति = संनति
- सम् + निहित = सन्निहित
- सम् + पूर्ण = संपूर्ण
- सम् + बंध = संबंध
- सम् + बल = संबल
- सम् + भव = संभव
- सम् + मान = सम्मान
- सम् + मुख = सम्मुख
- सम् + यम = संयम
- सम् + योग = संयोग
- सम् + रक्षण = संरक्षण
- सम् + लग्न = संलग्न
- सम् + वाद = संवाद
- सम् + वत् = संवत्
- सम् + सार = संसार
- सम् + हार = संहार
- सम् + स्कृत = संस्कृत
- सम् + कल्प = संकल्प
- सम् + कट = संकट
- सम् + गत = संगत
- सम् + थाल = संथाल
- सम् + लाप = संलाप
- सम् + लिप्त = संलिप्त
- सम् + न्यासी = संन्यासी
- सम् + कीर्तन = संकीर्तन
- सम् + कर्त्ता = संस्कर्त्ता
- सम् + कृति = संस्कृति
- सम् + न्यास = संन्यास
- सम् + चालन = संचालन
- सम् + चालक = संचालक
- सम् + गोष्ठी = संगोष्ठी
- सम् + घटन = संघटन
- सम् + घर्ष = संघर्ष
- सम् + घात = संघात
- सम् + घटित = संघटित
- सम् + जात = संजात
- सम् + ज्ञा = संज्ञा
- सम् + ज्ञान = संज्ञान
- सम् + झा = संझा
- सम् + तान = संतान
- सम् + तुष्ट = संतुष्ट
- सम् + ताप = संताप
- सम् + तुलन = संतुलन
- सम् + त्रास = संत्रास
- सम् + दर्भ = संदर्भ
- सम् + दाता = संदाता
- सम् + दान = संदान
- सम् + दूक = संदूक
- सम् + दृश्य = संदृश्य
- सम् + ध्या = संध्या
- सम् + ध्यान = संध्यान
- सम् + निधि = संनिधि
- सम् + निकट = संनिकट
- सम् + निपात = संनिपात
- सम् + नियम = संनियम
- सम् + पत्ति = संपत्ति
- सम् + पत्र = संपत्र
- सम् + पदा = संपदा
- सम् + पन्न = संपन्न
- सम् + पर्क = संपर्क
- सम् + प्रदान = संप्रदान
- सम् + प्रदाय = संप्रदाय
- सम् + प्रति = संप्रति
- सम् + बोधन = संबोधन
- सम् + बोधित = संबोधित
- सम् + भाल = संभाल
- सम् + भालना = संभालना
- सम् + भाषण = संभाषण
- सम् + भावना = संभावना
- सम् + भावित = संभावित
- सम् + भू = संभू
- सम् + मति = संमति
- सम् + मेलन = संमेलन
- सम् + मोहन = संमोहन
- सम् + यत = संयत
- सम् + युक्त = संयुक्त
- सम् + रचना = संरचना
- सम् + रक्षक = संरक्षक
- सम् + रक्षित = संरक्षित
- सम् + लाप = संलाप
- सम् + वरण = संवरण
- सम् + वर्ग = संवर्ग
- सम् + वर्धन = संवर्धन
- सम् + वाहक = संवाहक
- सम् + विधान = संविधान
- सम् + वेदन = संवेदन
- सम् + वेदना = संवेदना
- सम् + वेग = संवेग
- सम् + शय = संशय
- सम् + शोधन = संशोधन
- सम् + शोधित = संशोधित
- सम् + स्करण = संस्करण
- सम् + स्थान = संस्थान
- सम् + स्मरण = संस्मरण
- सम् + हत = संहत
- सम् + हरण = संहरण
- सम् + हिता = संहिता
अतिरिक्त अनुस्वार संधि उदाहरण:
- अहम् + कार = अहंकार
- किम् + चित् = किंचित्
- किम् + नर = किन्नर
- गम् + तव्य = गंतव्य
- शम् + कर = शंकर
- शम् + का = शंका
- शाम् + ति = शांति
- काम् + ति = कांति
- पम् + चम = पंचम
- कुन् + ठित = कुंठित
- नन् + दित = नंदित
- वाक् + मय = वाङ्मय
- समन्वय = सम् + अनु + अय
नियम 3: त् संबंधी संधि (विभिन्न नियम)
परिभाषा:
त् वर्ण के साथ विभिन्न व्यंजनों के मेल से अलग-अलग परिवर्तन होते हैं।
उप-नियम:
(क) त् + ल = ल्ल
- उत् + लेख = उल्लेख
- उत् + लास = उल्लास
- उत् + लंघन = उल्लंघन
- उत् + लसित = उल्लसित
- उत् + लाप = उल्लाप
- उत् + लोल = उल्लोल
(ख) त् + च/छ = च्च/च्छ
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
- सत् + चित = सच्चित
- सत् + चिदानंद = सच्चिदानंद
- उत् + चारण = उच्चारण
- उत् + चरित = उच्चरित
- जगत् + छाया = जगच्छाया
- उत् + छेद = उच्छेद
- उत् + छृंखल = उच्छृंखल
- अनु + छेद = अनुच्छेद
(ग) त् + ज/झ = ज्ज/ज्झ
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
- उत् + ज्वलन = उज्ज्वलन
- उत् + ज्ञान = उज्ज्ञान
(घ) त् + ट/ठ/ड = ट्ट/ठ्ठ/ड्ड
- उत् + डयन = उड्डयन
- तत् + टीका = तट्टीका
- उत् + ड्डीन = उड्डीन
(ङ) त् + श = च्छ
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- तत् + शिव = तच्छिव
(च) त् + ह = द्ध
- पद् + हति = पद्धति
- उत् + हरण = उद्धरण
- उत् + हार = उद्धार
- उत् + हत = उद्धत
- उत् + हृत = उद्धृत
त् संबंधी संधि के 100+ उदाहरण:
- उत् + चय = उच्चय
- उत् + चित = उच्चित
- उत् + चैस = उच्चैस
- उत् + छ्रय = उच्छ्रय
- उत् + छृंखलता = उच्छृंखलता
- उत् + लंब = उल्लंब
- उत् + लापन = उल्लापन
- उत् + लेखनीय = उल्लेखनीय
- उत् + लेखित = उल्लेखित
- उत् + लास्य = उल्लास्य
- सत् + चरण = सच्चरण
- सत् + चित्त = सच्चित्त
- सत् + चेष्टा = सच्चेष्टा
- सत् + जना = सज्जना
- सत् + जनता = सज्जनता
- सत् + जनो = सज्जनो
- उत् + ज्ञा = उज्ज्ञा
- उत् + जित = उज्जित
- उत् + जीवन = उज्जीवन
- उत् + जय = उज्जय
- वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
- छत्र + छाया = छत्रच्छाया
- वि + छेद = विच्छेद
- आ + छादन = आच्छादन
- सम् + उत् + चय = समुच्चय
- उत् + श्रय = उच्छ्रय
- उत् + शेष = उच्छेष
- उत् + शोषण = उच्छोषण
- उत् + स्थान = उत्स्थान
- उत् + स्थित = उत्स्थित
- उत् + साह = उत्साह
- उत् + सर्ग = उत्सर्ग
- तत् + हित = तद्धित
- उत् + हस्त = उद्धस्त
- उत् + धव = उद्धव
- उत् + धरण = उद्धरण
- बुद् + धि = बुद्धि
- शुद् + धि = शुद्धि
- सिद् + धि = सिद्धि
- युद् + ध = युद्ध
- उत् + ज्वलित = उज्ज्वलित
- उत् + ज्वाला = उज्ज्वाला
- सत् + जनो = सज्जनो
- विद्युत् + लता = विद्युल्लता
- उत् + लासन = उल्लासन
- उत् + लेप = उल्लेप
- उत् + लम्बन = उल्लम्बन
- उत् + चातन = उच्चातन
- उत् + चारक = उच्चारक
- उत् + चार = उच्चार
- परि + छेद = परिच्छेद
- सम् + छाया = संच्छाया
- नि + छल = निच्छल
- उत् + छलन = उच्छलन
- उत् + छन्न = उच्छन्न
- सत् + चल = सच्चल
- सत् + चारी = सच्चारी
- सत् + चेता = सच्चेता
- उत् + जागर = उज्जागर
- उत् + ज्योति = उज्ज्योति
- तत् + ज्ञ = तज्ज्ञ
- सत् + ज्ञान = सज्ज्ञान
- उत् + डीन = उड्डीन
- उत् + डयनशील = उड्डयनशील
- उत् + डंबर = उड्डंबर
- तत् + टंकार = तट्टंकार
- उत् + टंकित = उट्टंकित
- उत् + शमन = उच्छमन
- उत् + शिष्टता = उच्छिष्टता
- उत् + श्रृंखला = उच्छृंखला
- उत् + श्रम = उच्छ्रम
- उत् + हासन = उद्धासन
- उत् + हारण = उद्धारण
- उत् + हारक = उद्धारक
- पद् + हत = पद्धत
- पद् + हतता = पद्धतता
- युद् + धम = युद्धम
- बुद् + धत्व = बुद्धत्व
- शुद् + धता = शुद्धता
- सिद् + धत्व = सिद्धत्व
- उत् + ज्ञाता = उज्ज्ञाता
- उत् + हासक = उद्धासक
- उत् + धृत = उद्धृत
- उत् + धूत = उद्धूत
- उत् + धारण = उद्धारण
- तत् + हीन = तद्धीन
- कृत् + छ्रय = कृच्छ्रय
- चित् + चय = चिच्चय
- तत् + ज्ञा = तज्ज्ञा
- वित् + ज्ञ = विज्ज्ञ
- उत् + टीका = उट्टीका
- उत् + ठान = उट्ठान
- उत् + डाल = उड्डाल
- उत् + डालन = उड्डालन
- उत् + डीयमान = उड्डीयमान
- तत् + टवी = तट्टवी
- उत् + ढौकन = उड्ढौकन
- उत् + शमित = उच्छमित
- उत् + श्रित = उच्छ्रित
- उत् + ह्लाद = उद्ह्लाद
नियम 4: छ संबंधी संधि (श्चुत्व संधि)
परिभाषा:
जब किसी स्वर के बाद छ आता है, तो छ के स्थान पर च्छ हो जाता है।
सूत्र: स्तोः श्चुना श्चुः (जब स् या त-वर्ग के बाद च-वर्ग या श् आए)
छ संबंधी संधि के 100+ उदाहरण:
- अनु + छेद = अनुच्छेद
- वि + छेद = विच्छेद
- आ + छादन = आच्छादन
- वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
- छत्र + छाया = छत्रच्छाया
- परि + छेद = परिच्छेद
- स्व + छंद = स्वच्छंद
- नि + छल = निच्छल
- सु + छाया = सुच्छाया
- अति + छाया = अतिच्छाया
- प्रति + छाया = प्रतिच्छाया
- अभि + छन्न = अभिच्छन्न
- आवि + छन्न = आविच्छन्न
- सम् + छाया = संच्छाया
- उप + छाया = उपच्छाया
- प्र + छन्न = प्रच्छन्न
- नि + छत्र = निच्छत्र
- वि + छिन्न = विच्छिन्न
- सम् + छन्न = संच्छन्न
- अप + छाया = अपच्छाया
श्चुत्व संधि (स् + च/श = श्च/श्श):
- निस् + चय = निश्चय
- निस् + चित = निश्चित
- निस् + चल = निश्चल
- हरिस् + शेते = हरिश्शेते
- रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति
- मनस् + चलति = मनश्चलति
- कस् + चित् = कश्चित्
- रामस् + च = रामश्च
- बालस् + चलति = बालश्चलति
- फलस् + च = फलश्च
- नमस् + चंद्र = नमश्चंद्र
- पयस् + चिनोति = पयश्चिनोति
- तमस् + चयः = तमश्चयः
- वचस् + चयः = वचश्चयः
- मनस् + चित = मनश्चित
त् + च/छ/ज/झ के उदाहरण:
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
- महत् + चित्र = महच्चित्र
- सत् + जन = सज्जन
- उद् + ज्वल = उज्ज्वल
- शाङ्गिन + जय = शाङ्गिञ्जय
- जगत् + छाया = जगच्छाया
- उत् + चारण = उच्चारण
- तत् + चिंतन = तच्चिंतन
- उत् + छेद = उच्छेद
- सत् + चित् = सच्चित्
- वृद् + चि = वृच्चि
- युध् + च = युच्च
- तद् + चिंता = तच्चिंता
- उत् + चय = उच्चय
- तत् + ज्ञ = तज्ज्ञ
- सत् + ज्ञान = सज्ज्ञान
- उद् + जय = उज्जय
- बृहत् + चय = बृहच्चय
- महत् + चर्य = महच्चर्य
- सत् + चारी = सच्चारी
- वृत् + चय = वृच्चय
- तत् + च = तच्च
- कृत् + चित = कृच्चित
- तद् + ज्ञाता = तज्ज्ञाता
- उद् + ज्वलित = उज्ज्वलित
- सत् + चरण = सच्चरण
- महत् + चित्त = महच्चित्त
- उत् + चालन = उच्चालन
- तत् + चरित = तच्चरित
- सत् + चेष्टा = सच्चेष्टा
- महत् + चित्रण = महच्चित्रण
- उद् + ज्ञापन = उज्ज्ञापन
- तद् + ज्ञेय = तज्ज्ञेय
- सत् + चेतन = सच्चेतन
- उत् + चित = उच्चित
- तत् + जन = तज्जन
- सत् + चरित = सच्चरित
- महत् + जन = महज्जन
- उद् + जाग्रत = उज्जाग्रत
- तत् + चेतना = तच्चेतना
- सत् + चित्त = सच्चित्त
- महत् + चेतस = महच्चेतस
- उत् + चालित = उच्चालित
- तद् + जात = तज्जात
- सत् + जीव = सज्जीव
- उद् + ज्योति = उज्ज्योति
- तत् + चिंतनीय = तच्चिंतनीय
- महत् + चक्र = महच्चक्र
- सत् + चिदानंद = सच्चिदानंद
- उत् + चरित = उच्चरित
- तद् + जीव = तज्जीव
- सत् + चारित्र्य = सच्चारित्र्य
- महत् + चमत्कार = महच्चमत्कार
- उद् + जाता = उज्जाता
- तत् + चित्र = तच्चित्र
- सत् + चक्र = सच्चक्र
- उत् + चाटन = उच्चाटन
- महत् + चातुर्य = महच्चातुर्य
- तद् + जलज = तज्जलज
- सत् + छात्र = सच्छात्र
- उत् + छलन = उच्छलन
- महत् + छत्र = महच्छत्र
- तत् + छाया = तच्छाया
- सत् + जलज = सज्जलज
- उद् + जृंभण = उज्जृंभण
नियम 5: म् संबंधी संधि
परिभाषा:
जब म् के बाद क् से म् के बीच का कोई भी व्यंजन आता है, तो म् के स्थान पर उस व्यंजन वर्ग का पाँचवाँ वर्ण (अनुस्वार) हो जाता है।
विशेष: यदि म् के बाद म आता है तो म्म हो जाता है।
म् संबंधी संधि के 100+ उदाहरण:
- सम् + मान = सम्मान
- सम् + मुख = सम्मुख
- सम् + मति = संमति
- सम् + मेलन = संमेलन
- सम् + मोहन = संमोहन
- अहम् + कार = अहंकार
- किम् + कर = किंकर
- शम् + कर = शंकर
- परम् + तु = परंतु
- सम् + गम = संगम
- सम् + गीत = संगीत
- सम् + चय = संचय
- सम् + तोष = संतोष
- सम् + धि = संधि
- सम् + न्यास = संन्यास
- सम् + पत्ति = संपत्ति
- सम् + बंध = संबंध
- सम् + भव = संभव
- सम् + यम = संयम
- सम् + लग्न = संलग्न
- सम् + वाद = संवाद
- सम् + हार = संहार
- सम् + राट् = सम्राट्
- सम् + कल्प = संकल्प
- सम् + गठन = संगठन
- सम् + चार = संचार
- सम् + जय = संजय
- सम् + ताप = संताप
- सम् + तान = संतान
- सम् + देश = संदेश
- सम् + देह = संदेह
- सम् + धान = संधान
- सम् + निहित = सन्निहित
- सम् + पूर्ण = संपूर्ण
- सम् + प्रदाय = संप्रदाय
- सम् + बल = संबल
- सम् + भाल = संभाल
- सम् + भावना = संभावना
- सम् + युक्त = संयुक्त
- सम् + योग = संयोग
- सम् + रक्षण = संरक्षण
- सम् + लाप = संलाप
- सम् + विधान = संविधान
- सम् + शय = संशय
- सम् + सार = संसार
- सम् + स्कृत = संस्कृत
- सम् + स्थान = संस्थान
- अहम् + आत्मा = अहमात्मा
- किम् + चित् = किंचित्
- किम् + नर = किन्नर
- गम् + तव्य = गंतव्य
- शम् + का = शंका
- शाम् + ति = शांति
- काम् + ति = कांति
- तम् + मय = तन्मय
- सम् + मार्ग = सन्मार्ग
- सम् + मित = सम्मित
- सम् + मोह = सम्मोह
- सम् + मार्जन = सम्मार्जन
- सम् + मुखीन = सम्मुखीन
- सम् + मूर्च्छित = सम्मूर्च्छित
- सम् + मर्दन = सम्मर्दन
- सम् + मार्ग = सम्मार्ग
- सम् + माननीय = सम्माननीय
- सम् + मानित = सम्मानित
- सम् + मिलन = सम्मिलन
- सम् + मिश्र = सम्मिश्र
- सम् + मिश्रण = सम्मिश्रण
- सम् + मुग्ध = सम्मुग्ध
- सम् + मूढ = सम्मूढ
- सम् + मूल्य = सम्मूल्य
- सम् + मृत = सम्मृत
- सम् + मोहित = सम्मोहित
- सम् + मोचन = सम्मोचन
- सम् + मौन = सम्मौन
- सम् + मार्ग = सम्मार्ग
- सम् + मेल = सम्मेल
- सम् + मत = संमत
- सम् + मार्जित = सम्मार्जित
- सम् + मार्जना = सम्मार्जना
- सम् + कट = संकट
- सम् + कल्प = संकल्प
- सम् + कर = संकर
- सम् + कीर्तन = संकीर्तन
- सम् + कीर्ण = संकीर्ण
- सम् + कोच = संकोच
- सम् + क्रमण = संक्रमण
- सम् + क्रांति = संक्रांति
- सम् + क्षेप = संक्षेप
- सम् + क्षिप्त = संक्षिप्त
- सम् + खेत = संखेत
- सम् + ख्या = संख्या
- सम् + गत = संगत
- सम् + गति = संगति
- सम् + गुण = संगुण
- सम् + ग्रह = संग्रह
- सम् + ग्राम = संग्राम
- सम् + घटन = संघटन
- सम् + घर्ष = संघर्ष
- सम् + घात = संघात
नियम 6: स् संबंधी संधि (ष्टुत्व संधि)
परिभाषा:
जब स् के पहले अ, आ से भिन्न कोई भी स्वर आता है या स् के बाद ट-वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) आता है, तो स् का ष् हो जाता है।
सूत्र: स्तो ष्टुना ष्टुः
ष्टुत्व संधि के 100+ उदाहरण:
- अभि + सेक = अभिषेक
- नि + सेध = निषेध
- अभि + सिक्त = अभिषिक्त
- प्र + सिद्ध = प्रषिद्ध
- वि + सम = विषम
- नि + सिद्ध = निषिद्ध
- अभि + षेचन = अभिषेचन
- धनुस् + टंकार = धनुष्टंकार
- रामस् + षष्ठ = रामष्षष्ठ
- रामस् + टीकते = रामष्टीकते
- बालास् + टीकते = बालष्टीकते
- इष् + त = इष्ट
- कृष् + न = कृष्ण
- आकृष् + त = आकृष्ट
- विद्विष् + ट = विद्विष्ट
- आविष् + कार = आविष्कार
- आविष् + कृत = आविष्कृत
- नि + स्तब्ध = निष्टब्ध
- नि + स्तार = निष्टार
- नि + स्पंद = निष्पंद
- नि + स्पन्न = निष्पन्न
- नि + स्तेज = निष्तेज
- नि + स्वन = निष्वन
- वि + स्तार = विस्तार
- वि + स्मय = विस्मय
- वि + स्मरण = विस्मरण
- वि + स्तृत = विस्तृत
- वि + स्फोट = विस्फोट
- अभि + सिंचन = अभिषिंचन
- अभि + सेकन = अभिषेकन
- नि + सेवन = निषेवन
- प्रति + सिद्ध = प्रतिषिद्ध
- वि + सर्प = विषर्प
- नि + सर्ग = निष्सर्ग
- नि + सह = निष्सह
- वि + सर्जन = विसर्जन
- प्र + सव = प्रषव
- अनु + सार = अनुषार
- उपनि + सद = उपनिषद
- उप + सर्ग = उपष्सर्ग
- नि + सिद्धि = निषिद्धि
- प्र + सन्न = प्रषन्न
- अभि + सेच = अभिषेच
- परि + सर = परिषर
- प्र + सिद्धि = प्रषिद्धि
- वि + सर्प = विषर्प
- सु + सुप्त = सुषुप्त
- सु + सुप्ति = सुषुप्ति
- नि + सुप्त = निषुप्त
- अनु + सूचन = अनुषूचन
- नि + सूदन = निषूदन
- परि + सूत = परिषूत
- अधि + स्थान = अधिष्ठान
- अधि + स्थाता = अधिष्ठाता
- नि + स्थुर = निष्ठुर
- नि + स्ठीवन = निष्ठीवन
- प्रति + स्ठा = प्रतिष्ठा
- प्रति + स्ठित = प्रतिष्ठित
- नि + स्तर = निष्तर
- नि + स्तरण = निष्तरण
- नि + स्त्रिंश = निष्त्रिंश
- वि + स्तीर्ण = विष्तीर्ण
- नि + स्पंदन = निष्पंदन
- नि + स्पाप = निष्पाप
- नि + स्पृह = निष्पृह
- अनु + सूत्र = अनुषूत्र
- अनु + सूया = अनुषूया
- परि + सर्पण = परिषर्पण
- अभि + सार = अभिषार
- अभि + सारी = अभिषारी
- नि + सीदन = निषीदन
- उप + सर्ग = उपष्सर्ग
- प्रति + सेध = प्रतिषेध
- अभि + सेवन = अभिषेवन
- नि + सिंचन = निषिंचन
- अभि + सव = अभिषव
- वि + सम = विषम
- परा + सर = पराषर
- उप + सेवन = उपषेवन
- नि + सज्जन = निष्सज्जन
- नि + सहाय = निष्सहाय
- नि + सत्व = निष्सत्व
- नि + सार = निष्सार
- वि + सहन = विष्सहन
- नि + सन्देह = निष्सन्देह
- नि + सत्य = निष्सत्य
- नि + स्नेह = निष्स्नेह
- वि + सामान्य = विषामान्य
- नि + स्वार्थ = निष्स्वार्थ
- नि + सीम = निष्सीम
- परि + सीमा = परिषीमा
- अनु + सूची = अनुषूची
- नि + स्संग = निष्संग
- नि + स्कर्ष = निष्कर्ष
- नि + स्कारण = निष्कारण
- नि + स्कंटक = निष्कंटक
- नि + स्कपट = निष्कपट
- नि + स्काम = निष्काम
- नि + स्कासन = निष्कासन
- नि + स्कीर्ति = निष्कीर्ति
नियम 7: चर्त्व संधि
परिभाषा:
जब झल् वर्ण (वर्ग का 1, 2, 3, 4 वर्ण तथा श्, ष्, स्) के बाद कोई खर् वर्ण (वर्ग का 1, 2 वर्ण तथा श्, ष्, स्) आए, तो झल् वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का पहला वर्ण हो जाता है।
चर्त्व संधि के उदाहरण:
- सद् + कार = सत्कार
- तद् + पर = तत्पर
- उद् + कर्ष = उत्कर्ष
- उद् + कृष्ट = उत्कृष्ट
- उद् + पन्न = उत्पन्न
- उद् + पत्ति = उत्पत्ति
- आपद् + ति = आपत्ति
- लभ् + स्यते = लप्स्यते
- तद् + कर = तत्कर
- तद् + कर्ता = तत्कर्ता
- तद् + कारण = तत्कारण
- तद् + काल = तत्काल
- तद् + क्षण = तत्क्षण
- तद् + पश्चात् = तत्पश्चात्
- तद् + पूर्व = तत्पूर्व
- सद् + कर्म = सत्कर्म
- सद् + कीर्ति = सत्कीर्ति
- सद् + कृत = सत्कृत
- सद् + कृत्य = सत्कृत्य
- उद् + कंठ = उत्कंठ
व्यंजन संधि के अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण:
सामान्य व्यंजन संधि उदाहरण:
- उत् + कृष्ट = उत्कृष्ट
- उद् + हार = उद्धार
- वाक् + दान = वाग्दान
- सज्जन = सत् + जन
- उल्लंघन = उत् + लंघन
- निश्चय = निस् + चय
- संयोग = सम् + योग
- उच्चारण = उत् + चारण
- अभिषेक = अभि + सेक
- जगन्नाथ = जगत् + नाथ
व्यंजन संधि की पहचान
व्यंजन संधि की पहचान के लिए निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखें:
- दोहरे व्यंजन: सम्मान, सज्जन, उल्लास
- ङ्, ञ्, ण्, न्, म्: संगम, षण्मुख, उन्नति
- द्ध, द्ध: बुद्धि, युद्ध, पद्धति
- त् का परिवर्तन: उच्चारण, उज्ज्वल, उड्डयन
- अनुस्वार (ं): संयम, संगीत, संवाद
परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:
याद रखने योग्य नियम:
- जश्त्व नियम: क् → ग्, च् → ज्, ट् → ड्, त् → द्, प् → ब्
- अनुस्वार नियम: वर्ग का पहला + न/म → पाँचवाँ वर्ण
- त् नियम:
- त् + ल = ल्ल
- त् + च/छ = च्च/च्छ
- त् + ज/झ = ज्ज/ज्झ
- त् + ह = द्ध
- छ नियम: स्वर + छ = च्छ
- म् नियम: म् + व्यंजन = अनुस्वार/पाँचवाँ वर्ण
- स् नियम: स् (अ, आ को छोड़कर) = ष्
त्वरित पहचान:
- सम् से शुरू होने वाले शब्द = म् संबंधी संधि
- उत्/उद् से शुरू होने वाले शब्द = त् संबंधी संधि
- दिक्/दिग् = जश्त्व संधि
- षट्/षड् = जश्त्व संधि
- अभि + स = ष्टुत्व संधि (अभिषेक)
संधि विच्छेद कैसे करें?
- दोहरे व्यंजन देखें: सज्जन = सत् + जन
- अनुस्वार देखें: संगम = सम् + गम
- विशेष व्यंजन: उच्चारण = उत् + चारण
- ध्वनि परिवर्तन: दिग्गज = दिक् + गज
- मूल धातु पहचानें: उल्लास = उत् + लास